काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी । प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । https://shivchalisas.com